Tuesday, February 16, 2010

Monday, February 15, 2010

मेरी रचनाएँ

माँ

जो माँ ने मुझे ये, जीवन दिया है,
बदले में क्या? मैने उसको दिया
रही खुद गीले में, सूखा मेरे किया है,
भूख लगी जब उसे, सूखा मैने दिया

कोई भी मुश्किल जब आती मुझ पर
सहलेती सब दुःख हर क्षण खुद पर
मैं जब भी रोता, मनाती वो जमकर
जब वो रोती, हंसाता में जमकर

जो माँ ने मुझे से घरबार दिया है
मैने उसे घर से बाहर किया है
रही खुद चिन्ता में, मुझे हर्ष दिया है
अपमान नित में सहर्ष किया है

कड़ी धूप जाकर लड़कियां लाती
थकी हारी माँ फिर चूल्हा जलाती
संग आँसूओं के रोटियां बनाती
बड़े चाव से वो मुझको खिलाती

जो माँ ने मुझे नवजोश दिया है
बदले में उसको बेहोश किया है
दोष पर भी मुझको निर्दोष किया है
निर्दोष पर भी उसको दोष दिया है

 

 

 (2)
अंगुली पकड़ के स्कूल ले जाती
दुनिया के सब पाठ मुझको पढ़ाती
घटा दुःख दर्दाे को खुशियां बढ़ाती
'सर्वस्व' देने को पिता को मनाती

जो माँ ने मुझे, ये ज्ञान दिया है
बदले में मैने परेशान किया है
ममता भरे अपने, मन को सिया है
पर मेरे मन में सुलगता जिया है

सपने सजा के शादी कराई
नशे में लुगाई के, हुई माँ पराई
दादी बन फिर वो इतराई
बढ़ गई ममता में और गहराई

जो माँ ने मुझे ये सौगात दी है
बदले में उस पे सौ घात की है
जो माँ ने मुझे जीवन दान किया है
बदले में मैने उसे शमशान दिया है

 

ऐसी शक्ति दो महावीर

सच्चे अनुयायी कहाएं हम।
जिन शासन का पालन कर,
जन-धर्म इसे बनाएं हम।।

हमने किया प्रचार अभी तक,
नगर-गाँव-गलियारों में।
सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह,
पहुँचे हर आँगन चैबारों में।।

देकर अनेकान्त संदेश,
सम्यक सोच बढ़ाएं हम।
जिन शासन का पालन कर,
जन-धर्म इसे बनाएं हम।।

समता-भाव भरे उर में,
भेदभाव-समूल नष्ट हो।
जीएं और जीने दें सबको,
प्राणी मात्र को ना कष्ट हो।।

मोक्ष का असली स्वरूप,
मानवता को दिखाएं हम।
जिन शासन का पालन कर
जन-धर्म इसे बनाएं हम।।

मन का मंगलमय विचार,
अब दृढ़ संकल्प हमारा हो।
वीतराग की शरणागति से,
कायाकल्प हमारा हो।।

आधुनिकता की दौड़ में कहीं,
अनर्थ ना कर जायें हम।
जिन शासन का पालन कर,
जन-धर्म इसे बनाएं हम।।

 

 महावीर हर प्राणी का उद्धार करे

वर्धमान महावीर हर प्राणी का उद्धार करे।
ओजस्, तेजस, वर्चस् त्रयतापों का उपचार करे।
करूणा के सागर जितेन्द्र की आभा अनुपम
प्रकाश के पूँज अनूठे, शेष नही रह पाया तम।
ज्ञान प्रकाश सदा बिखराकर अज्ञान-अंधकार हरे।
ओजस् तेजस् वर्चस् से त्रयतापों का उपचार करे।
दुःख से मुक्त कराते मन को, सुख स्वरूप का ज्ञान करा।
निरोग बनाते तन को, भोगवाद से त्राण करा।
सुख समृद्धि बढ़ाने वाली जीवन विधि आधार करे।
वर्धमान महावीर हर प्राणी का उद्धार करे।
उनके संदेश जगाते पाप-पतन से बचने को
जगती के उज्जवल-भविष्य का स्वर्ग धरा पर रचने को
वसुधा कुटुम्ब बनाने वाले संवेदन विस्तार करे।
ओजस् तेजस् वर्चस् से त्रयतापों का उपचार करे।
''जिनवाणी'' सद्बुद्धि हमारी आओ! उसको वरण करे।
सद्भावों का हृदय धरा पर सब मिलकर अवतरण करे।
सद्बुद्धि ही विभिषिकाओं, विपदाओं से पार करे
दुश्चिन्तन, दुर्भाव ग्रसित जनमानस का उद्धार करे।
वर्धमान महावीर हर प्राणी का उद्धार करे।
ओजस्, तेजस, वर्चस् त्रयतापों का उपचार करे।
 

सांवत्सरिक क्षमापना

साल में हमसे कोई, हुइ्र कभी हो भूल
वंदन कर माँगे 'क्षमा' पर्युषण का है मूल।
तप-आराधना नित करे, श्रद्वा सारू आप
समता उर में जगे, मेट दिलो के पाप।
रिवाज धर्म का जब चले, खुले 'मोक्ष' के द्वार
कषाय कर्म को छोड़ दे, सुखी रहे संसार।
''क्षमा वीरस्य भूषणं'' अहं कायर अज्ञान
मायत सेवा जो करे जीतले सकल जहां।
परखो अपने दोष को चाहो अगर उद्वार
नाते-रिश्ते झूठे हैं अनुभव का यही सार।

क्षमायाचना

अहं भूल खुश रहो, कर थोड़ा उपकार।
दुःख से बचने का यही, एक मात्र उपचार।।

गुस्सा, नफरत छोड़ दे, करे ना तिरस्कार।
तन-मन-नित स्वस्थ रहे, सुख का यही आधार।।

आपसी रंजिश भूल, रिश्ते नया रचा।।
'मिच्छामि दुक्कडं' कहो, जीवन दो सजा।।

माफ करना सीखिए, भूल गुण इंसान।
धन-दौलत ये कुछ नही, जब हो क्षमा।।

अक्षम्य कोई जुर्म नही, विवेक की है बात।
त्याग-समन्वय संग चले तो, मिट जाये आघात।।

संवत्सरी पर्व पर, माँगे क्षम का दान।
''क्षमावीरस्य भूषणं'' मान ले तू नादां।।

दिल दुःखाया हो यदि दी कोई यातना।
भूल करे ना फिर कभी, करे क्षमा याचना।।

 

 2010 मंगल मय वर्ष हो...............

स्वच्छ स्वस्थ समृद्धि से,
जीवन का उत्कृर्ष हो,
मंगलमय वर्ष हो,
संयममय वर्ष हो,
छल प्रपंच से दूर रहे हम,
संग्रह पर अकुंश हो।
लोभ-मोह का रोग निवारे,
चित्त हमारा वश हो।
सुख-शान्ति की अभिवृद्धि से,
हर जीवन का फर्श हो.......
मंगलमय वर्ष हो......
संयममय वर्ष हो.........
जिसका जो अधिकार हो उसको,
हम क्यूं भला चुराए।
हम मानव हैं मानवता का,
उर में दीप जलाए।।
कर्मयोग से जो कुछ पाये
वही हमारा हर्ष हो....
मंगलमय वर्ष हे।
संयममय वर्ष है।
मधुर बने आचार हमारा,
जो औरो से हम चाहे।
संकट में भी कभी ना छूटे,
हमसे सच्ची राहे।।
सभ्य, शिष्ट, संस्कृति से
गाँधी का दर्श हो..........
मंगल मय वर्ष हो........
स्वच्छ, स्वस्थ्य समृद्धि से,
जीवन का उत्कर्ष हो।
मंगलमय वर्ष हो.........

 

नववर्ष 2008 की

मेहरबान तुम पर रहे, आने वाला साल।
रीति से उत्सव मने, करदे मालामाल।।

मेहरबान तुम पर रहे, आने वाला साल।
रीति से उत्सव मने, करदे मालामाल।।
औषधि का पड़े नहीं, तन पर कोई काम।
रहे सदा हरिकृपा, सबको मिले आराम।
सेवा भक्ति, समता के, दिल में हो सद्भाव।
नहीं मन में कोई रखे, किसी से भेद-भाव।।
ये शुभकामनाएँ है मेरी, विकसित हो वतन।
सामाजिक हम सब बने, भरसक करें जतन।।
लक्ष्मी से भण्डार भरे, सरस्वती के साथ।
कीमत इंसान की बढ़े, रहे ना भोग विलास।।
शुभ कार्य करे हम, हो ना अशुभ काम।
भगवान को याद करें, नित सुबह और शाम।।
कार्य को मिल कर करें, बढ़े ना कोई बोझ।
महापुरुषों की रही, सदा यही सोच।।
नाज तुम पर रहे, भारत माँ के लाल।
एतबार सिर्फ तुम्हीं पर, जीयों हजारों साल।।

2008
दोष अपना देख ले, करे भूल सुधार।
हरि नाम सुमिरण करे, सुखी बने घरबार।।
जाये शरण ईमान की, हो ना भ्रष्टाचार।
रब कभी रूठे नहीं, खुशियां दे अपार।
आस पूरी हो सभी, हो न कोई निराश।
ठहरे जो पल भर कहीं, थम जाये विकास।।

 

 पर्यावरण का रूप निखारें


प्रदूषण मुक्त रहे धरा, कोशिश यह करें जरा।
पर्यावरण सम्मत विकास करें,
कुदरत का नहीं नाश करें,
जीये और जीने दिया करें,
अंहिसा पालन किया करें।

सदियों तक चले परम्परा, कोशिश यह करें जरा।
बढ़ती हुई आबादी को रोकें,
घटते हुए जंगल की सोचें,
हिंसक कृत्य होने से रोकें,
वृक्ष एक हर जन रोपे।

जीवन रहेगा हरा-भरा, कोशिश यह करें जरा।
जल-थल-ध्वनि-वायु प्रदूषण,
पर्यावरण के हैं जानीदुश्मन,
महाप्रलय को देते निमंत्रण,
करना होगा छोटा-सा इक प्रण।

रहे ना प्राणी डरा-डरा, कोशिश यह करें जरा।
बच्चे हमारे हरदम पुकारें,
कैसे चमके भाग्य हमारें,
आओ अपनी भूल सुधारें,
पर्यावरण का रूप निखारें।

गांधी अब सब जगे जरा, कोशिश यह करें जरा।

 

नई सदी में हिन्द - जिंक

नई सदी में हिन्द - जिंक,
अम्बर को छू जाये।
तोड़ सारे रिकार्ड पुराने,
नव इतिहास रचाये।
घटे दूरियां मिटे विषमता,
निराशा दूर भगाएं।
नव वर्ष के नव क्षितिज पर,
नया सवेरा लाए।
सुरक्षा हो चहुँ दिशा में,
दुर्घटना थम जाये।
प्रदूषण की रोकथाम कर,
पर्यावरण बचाएं।
सरल तरीके ढूँढ़-ढूँढ़ कर,
उत्पादकता बढ़ाएं।
सीसा - जस्ता प्रिय हमारे,
कुन्दन बन जाएं।
प्रगति - रथ कभी रूके ना,
मिलकर बढ़ते जाए।
गांधी पुत्र करे प्रार्थना,
मंगल-गान सुनाएं।
नई सदी में हिन्द-जिंक,
अम्बर को छू जाये। ...........

 

 वो हिंद-जिंक है मेरा

जहाँ सभी धर्मों के मानव कर्मठ करते है बसेरा,
वो हिंद-जिंक है मेरा...........2

जहाँ सीसा-जस्ता और चाँदी का निश-दिन लगता ढेरा,
वो हिंद-जिंक है मेरा ...........2

जहाँ मेहनत और निष्ठा भाव से काम की होती पूजा,
अलौह धातुओं का समन्दर जहाँ में ना कोई दूजा,
जहाँ विश्व की उन्नत तकनीक ने खुशियों से बिखेरा,
वो हिंद-जिंक है मेरा ...........2

जहाँ अनुशासन और गुणवत्ता को नित अपनाया जाता,
जहाँ उत्पादन को उत्पादकता से महकाया जाता,
जहाँ दुर्घटना पर सुरक्षा का पग-पग लगता पहरा,
वो हिंद-जिंक है मेरा ...........2

जावर, दरीबा, आगूचा खानों के बादल बरसे,
चन्देरिया, देबारी, विशाखा फसले हरषे,
जहाँ वेदान्ता ने सबसे पहले डाला अपना डेरा,
वो हिंद-जिंक है मेरा ...........2

 

दीप जैसे रोशन हो 'वेदान्ता' परिवार

दीप जैसे रोशन हो, वेदान्ता परिवार।
पावन सबके मन बने, सुखी बने घरबार।।
वतन फूले और फले, जग में हिदुस्तां।
'लीछमी' घर-घर में बसे, समृद्ध हो इंसान।।
कीमत उत्पादों की बढ़े, घटे लागत के दाम।
शुभ कामना मिल करे उत्कृष्ट मिले परिणाम।।
भक्ति-भाव से काम की, पूजा हम करे।
कारोबार गगन चूमे सदा, रहे भण्डार भरे।।
मन में यह संकल्प करे, चले प्लांट अविराम।
नाज से निश-दिन जपे, 'वेदान्ता' का नाम।।

समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ
समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ।
उच्च गुणवत्तमय उत्पादन बढ़ाए।।
अपनी मशीन से रखे लगाव,
साफ-सफाई से करे रख-रखाव,
दुर्घटना का नहीं रहे दबाव,
कार्य-स्थल पर नहीं प्रदूषण फैलाएं।
समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ।।
मशीन करे भरपूर उपयोग,
जीवनकाल उसका देखे हर रोज,
कार्य से पहले करे यह प्रयोग,
रखे ना मन में विपरीत सोच,
दिनचर्या में स्व-निरीक्षण जगाएं।
समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ।।
कर्तव्य की अपने हो जिम्मेदारी,
कर्मचारी हो चाहे अधिकारी,
समर्पित भाव से हो भागीदारी,
अर्थ-व्यवस्था बिगड़े ना हमारी,
संसाधन है सीमित इनको बचाएं।
समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ।।
मुश्किल होता नहीं, कोई काम,
मन में अगर लिया हो ठान,
उच्च उत्पादकता का मंत्र महान,
विश्व में बढ़ाए हमारी शान,
आओ हम सब अब जुट जाएं।
समग्र उत्पादकता अनुरक्षण अपनाएँ।।

 

 उत्पादकता

'उत्पादकता' एक नारा है,
 जो संवारता है - कार्यशैली को।
'उत्पादकता' एक ज्योति है
  जो दिखाती है पग-पग पर सही रास्ता।
'उत्पादकता' एक यात्रा है
  जो बनाती है मंजिल आत्म निर्भरता को।
'उत्पादकता' एक दर्पण है
  जो निखारता है अर्थ व्यवस्था को।
'उत्पादकता' एक ईलाज है,
  जो बचाता है संसाधनों को।
'उत्पादकता' वह गुलशन
  जो महकाता है, उत्पादन को।
'उत्पादकता' शब्द ही नही,
  जो आन्दोलन है निरन्तर प्रगति का।

5 'ै'

 

दोहावली

1ै. चारों ओर देखे जरा वस्तु स्थान उचित।
 बेकार शामिल ना करे, रखे सब सुरक्षित।।

2ै. वस्तु को रखो वही हो जहां स्थान।
 लेबल से तय कर सके, हम उसकी पहचान।।

3ै. मशीन हो या उपकरण स्वतः साफ करे।
 निरीक्षण कर जान ले, हम उसके खतरे।।

4ै. नियम से गर हम चले, होत ना कभी विफल।
 मानकीकरण से, होवे काज सफल।।
5ै. शासन पर पर ना करे, निज पर हो शासन।
 अनुशासन का हो सदा, घर से अनुपालन।।

दीप मालिका पर्व मनाओ

मानक तकनीक को अपनाकर
परिश्रम को जीवन सूत्र बनाकर
हाइड्रो - पायरो का भेद मिटाकर
सिनीयर - जूनियर का भेद भूलकर
एकता का दीप जलाओ।
दीपमालिका पर्व मनाओ।।
उत्पादन की जोत जलाकर
सुरक्षा को नित अपनाकर
पर्यावरण को स्वच्छ बनाकर
अनुशासन का स्वयं पालन कर
उत्पादकता का दीप जलाओ।
दीपमालिका पर्व मनाओ।
मिशन और विजन ध्यान में रखकर
लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति कर
हिन्द-जिंक नव इतिहास रचाकर
वेदान्त चमकाये जैसे दिनकर
उत्कृष्टता का दीप जलाओ।
दीप मालिका पर्व मनाओ।
मन को मंगलमय बनाकर
कर्म-पंथ पर नित हो अग्रसर
दुराचार को दिल से मिटाकर
रिश्तों को और मजबूत बनाकर
नेह भरा दीप जलाओं
दीप मालिका पर्व मनाओ। 

 
सुरक्षा चालीसा

सुरक्षा मंत्र रोज धर
मम-मन पावन कारि।
बसहंु जीवन विमलयश
जो नाशक दुःख सारि।।
जय सुरक्षा नाम गुण सागर
जीवन ज्योति करहुं उजागर।
अंग मित्र निज बल के धामा
स्वस्थ रखहुं सुरक्षा कामा।।
बदन वस्त्र तुम हो बहुरंगी
सुख सलिल बहे सुरंगी
कंचन रजत सुन्दर सी काया
सुरक्षा से है सब माया।।
आंख ऐनक सिर टोपा साजे
पांच एस. मन माहीं राचे।
स्वच्छ सुमन काया के नंदन
हम सब करे सुरक्षा को वंदन।।
कामगार, गुणी अतिचातुर
सब हो सुरक्षा हित आतुर।
सुख-शान्ति का यही है जरिया,।
सुरक्षा जब हिरदा मा बसिया।।
सुरक्षा मंत्र विश्व दिखावा
सब जन-मन सुरक्षा भावा
वेद रूप धरि विघ्न सुधारे
सब जन हित सुरक्षा धारे।।
सुरक्षा अनुशासन सिखाये
हर्षे सब आनन्द उर छाये।
सुरक्षा देव की बहु बड़ाई
जान बचे नवनिधि पाई।।
जो यह मंत्र ध्यान से गावे
सुरक्षा नव जीवन लावे।
गीता-कुरान ग्रन्थ सरीसा
सुरक्षा सच्चा जगदीसा।। घर, सड़क, उद्योग जहां ते
सब ही सुरक्षा जस गाते।
करम उपकृत सबहिं कीन्हा
सुरक्षा मानव पद दीन्हा।
कष्ट महिमा सब जग जाना
सुरक्षा से सब ले ज्ञाना।
जग में नभ पर शशि और भानु
सुरक्षा ते घट मंह मानु।।
जपो ये मंत्र सदा मुख माहिं
सुरक्षा रख तन और घट माहिं।
करम द्वारे तुम रखबारे
सुरक्षा भेजत घर के द्वारे।
सब सुख दे सुरक्षा सरणा
सब दुःख मिटे सुरक्षा चरणा।
जीवन बढ़त तेज आपै,
हर जन जब सुरक्षा वापे।।
सुरक्षा जब सब अपनावे,
सहज सुगम हर चीज कु पावे।
दुःख संकट निकट ना आवे
सुरक्षा जब तन पर छावे।।
नाशे रोग हरे सब पीरा,
जब सुरक्षा धरि मन वीरा।
यमदुत से प्राण छुड़ावे
सुरक्षा ध्यान जो लावे।।
सब पर है सुरक्षा राजा,
सुरक्षा पहले और न काजा।
और मनोरथ जो कोई लावे,
सुरक्षा से सब फल पावे।।।
चहुं दिस है प्रताप तुम्हारा,
सुरक्षा हो धर्म हमारा।
कामगार के तुम रखवारे
सुरक्षा उपकरण हमारे।। सब सुख साधन के अवदाता,
दीर्घायु के हो बलदाता।
प्राण रसायन तुम्हारे पासा,
दुघटना का करहुं विनाशा।
जते से जान को पावे
जगत के सारे सुख को पावे
ड्यूटी पर जब सुरक्षा सहाई
जो है अनी असली कमाई
थोथी बात चित न धरई
सुरक्षा पूजा नित करई।
भय मिटे अरू घटे अधीरा
पीवे जब सुरक्षा नीरा।।
जो सहयोग करे सब कोई,
दुर्घटना घटे ना कोई,
पढ़े जो ये सुरक्षा चालीसा
होय प्रगति जीवे आलीशां।।
हर जन का हो मंत्र ये प्यारा,
डूबत को है तिनका सहारा
जय-जय-जय सुरक्षा नारा
जीवन मित्र बड़ा ही प्यारा।।
चेहरा कमल महक बदन,
सुन्दर मुरति रूप।
मंत्र सुरक्षा जो पढ़े,
हृद्य बसहुं सूर भूप।।

 
भक्तिमती मीरा


जहां भक्ति से शक्ति मिले, मेवाड़ की धरती है।
वो भक्तिमती मीरा उस पथ पर चलती है।।
उस कोमल काया पर, हल्दी का रंग चढ़ा।
मेहंदी भी रंग लाई, गल मंगलसूत्र पड़ा।।
प्रभु क्यों ना मांग, भरे यही बात खलती है।
जागा वैराग्य कभी धारा प्रभु पथ पावन।
राणा का पी के गरल, तुमने तोड़े बन्धन।
उस परम वीरागी को, चिर प्रीत उमड़ती है।
वो भक्तिमती मीरा उस पथ पर चलती है।
मीरा की आंखों से झर-झर झरता पानी।
अंतस घाव भरे प्रभु दर्श की दीवानी।।
मन मंदिर में जिसकी तस्वीर उभरती है।
वो भक्तिमती मीरा उस पथ पर चलती है।
प्राणी के प्रति जिसके चितवन में समता है।
ज्यों गायों की पीड़ा पल भर में हरता है।
उसकी विरहिन दासी पीड़ा से सिसकती है।
जिस ओर गए प्रभु तुम वही मेरा ठिकाना है,
जीवन की यात्रा का में मग अनजाना है।
लख चरण "गाँधी" के मीरा तब चलती है।

उड़ जाऊंगी एक दिन

कुछ कहना चाहती हूँ सुन लो मेरी बात को
दुनिया के रंगो में मैं भी जीना चाहती हूँ माँ।
लाखों जतन से तेरे गर्भ में आई
किसकी हिम्मत? तेरे सिवा जो समझे पराई
कौन जानेगा पीर मेरी, पूछना चाहती हूं मां
लहू तो पिया तेरा दूध ना पी पाई
मिट गया सब कुछ आंसू भी ना बहा पाई
बताओ क्या है जुर्म मेरा पूछना चाहती हूं मां
बेटिया जग की यूं ही मरती रहेगी
मिट जायेगा मानव यहां ममता ना बचेगी
खो जायेगी बहना कहीं जगाना चाहती हूं मां
लेने दो जनम मुझे भी घर में तुम्हारे
होगी सदा, लक्ष्मी वहां चमकेंगें सितारे
उड़ जाऊंगी इक दिन मैं कहना चाहती हूं मां
दुनिया के सारे ...............
 
रहिमन धागा ..........

अब मूल्यों के हास की फैली हवा प्रचण्ड।
अनुशासित बापू, बेटे हुए उदण्ड।।
निराश्रित माता हुई, फिरते पिता अनाथ।
पुत्र पराए हो गए, ले बहुओं को साथ।।
बेटे भी निरूपाय है, बहुंए भी निरूपाय।
घर में अब मां-बाप है, पीड़ा के पर्याय।।
बेटों को फुरसत कहां, सुने पिता की बात
जिंदा है अब भी ससुर, बहूओं को संताप।।
बहुओं ने घर में रख एक अलग संसार।
बीच भाईयों के खिंची, नफरत की दीवार।।
देवर-भाभी के कहां, रहे मधुर सम्बन्ध
भ्राताओं में प्यार के, टूट गए अनुबन्ध।
नाना नानी अब नहीं बचपन को मंजूर।
दादा-दादी की हुआ छायाओं से दूर।
भाई के बहिना भले निकट रहे या दूर।
केवल रस्म अदायगी, राखी का दस्तुर।।

जप ले जरा नवकार


जीवन है फल शुभ कर्माे का।
कर थोड़ा उपकार तू,
निश दिन तन को ढोने वाले,
जप ले जरा नवकार तू।
ये जग सारा दुःख का बाड़ा,
चैन कही ना पायेगा।
तेरा खून ही आकर तुझमें,
एक दिन आग लगायेगा।
वक्त यही है संभलने का
नाकर इंतजार तू ना कर
क्या है? तेरा क्या है? मेरा
सब यही रह जायेगा
लाख कमाई तूने दौलत
सुख कोई ओर पायेगा
गफ़लत में यू जीने वाले
भूल जा ये अधिकार तू
दिया हे तुमको जिसने जीवन
वो माँ सबसे प्यारी है
हर बार जिताया है तुमको
वो हर बार हारी है
चरणों में नित उठकर माँ के
करना नमस्कार तू
निश दिन........
 
म.सा. रूप चंद जी 'रजत'

रूदन जड़ से दे मिटा कर दे चमत्कार।
पद्म विभूषित आपको, कोटिशः नमस्कार।।
चंदन सा महके सदा, 'आगम' का उपवन।
दक्ष-कौशल आपका, सफल करे जीवन।।
जीव-रक्षकर हम बने, दिया दिव्य संदेश।
रहे समता उर में सदा, हो न राग-द्वेष।।
जपे रूप-रजत सदा, होवे बेड़ा पार।।
तरक्की थमे नहीं, सुधरे जन्म हजार।।

मुनि सुरेश कुमार जी 'हरनावा'

मुग्ध किया चित्तौड़ को देकर दिव्य संदेश।
निर्माण चरित्र का करो हो ना राग-द्वेष।।
सुवचन श्री आपके करेंगे बेड़ा पार।
रेला भक्तों का बहा ज्यूं नदिया की धार।।
शक्ति ऐसी दी हमें होगा जन-कल्याण।
कुसुम प्रीत के नित खिले सुखी रहे हर प्राण।।
मायत की सेवा करो ऊंचा देकर मान।
रहम दीनों पर करो, करो ना अभिमान।।
हरण कर कषाय का, जीतो सबके मन।
रथ जीवन का हाँक लो, कर्म करो पावन।।
नाज करो स्वयं पर मानव मिला जनम।
वास सद्गुणों का रहे करो ना दुष्करम।।

मुनि संबोध कुमार जी ''कोलकाता''
मुदृत से है मिले ऐसे कोई संत।
निरोगी आप रहे दुआ करे ये अनंत।।
संबंध प्रभु से आपका है बड़ा अटूट।
बोल मिश्री के डले खूब मचाई लूट।।
धर्म पथ पर है बढ़े एक-दशक से आप।
कुंदन सम दमकेे सदा, मेट जग के संताप।।
मानवता का आपने हमको दिया उपहार।
रथ चलाने धर्म को छोड़ दिया संसार।।
कोशिश आपकी सफल हो हमारी है दुआ।
लम्हा भी ना व्यर्थ हो, ''दिखो नित-जवां।।
कामयाबी नित मिले हो आप सफल।
ताजगी ये बनी रहे बढ़े तेज और बल।।

 

मृदु प्रिया श्री जी म.सा. को नमन


मृत को अमृत करे, बिन दवा उपचार।
दुःख दुःखियों के दूर करे, कर दे बेड़ा पार।।
प्रियंवदा की वाणी का, जब होवे संचार।
याचना मिलकर करों, शरण मिले हर बार।।
श्री चरण जहां धरे, होत वहां उपकार।
जीवन सबका फूले-फले, पुण्य का हो अम्बार।।
मम तजे और  हम भजे, छोड़ दे अहंकार।
सादगी धारण करे, उच्च रखे विचार।।
कोहिनूर जैसे चमके, नित आपका परिवार।
नमन कर मांगे दुआ, जियो साल हजार।।
मन को निर्मल शान्त करे, आपका दरबार।
नत - मस्तक वंदन करे, आशीष दो उपहार।।

महावीर नवयुवक मण्डल


मजहब में ना द्वेष हो, हो ना कोई राग।
हारे ना हिम्मत कभी, जगा दे ऐसी लाग।।
वीतराग के मार्ग पर चलना अपना काम।
रघुकुल सबका कुल बने, सब में देखे राम।।
नवाचारों से सदा करते मेल मिलाप।
वक्रतुण्ड दर्शन से, होत ना कभी संताप।।
युगधारा संग हम चले, मर्यादित हैं आचार।
वरण समता भाव ही प्रगति का आधार।।
कषाय कर्मो को सदा मन से रखते दूर।
मंत्र महा नवकार का आनंद मिले प्रचुर।।
डर-डर के जीते नहीं, जीवन बड़ा अनमोल।
लब जब भी अपने खुले, बोले मीठे बोल।।

"संगत कुमुद की मिलती रहे"


दिवाकर दरबार की ज्योत ये जलती रहे
महासती कुमुद की संगत सदा मिलती रहे
ज्ञान के अमृत सरावेर त्याग के है देवता .........2
चन्द्र सम शीतल है ये सूर्य जैसी दिव्यता
दिव्यता बढ़ती रहे ये प्रभा मिलती रहे.....महा....
महा-अमित प्रभा है और संयम के ये धनी
पदम कमला कीर्ति है कोई शोभित हीरा कणी.........2
ये कणी जगमग रहे, जब तलक धरती रहे
महासती कुमुद की.....................
अमृतवाणी सुन के जिनकी लाखों मन हैं तरा
धन्य है चित्तौड़गढ़ और धन्य है ये धरा.........2
ये धरा पावन रहे शक्ति ये जगती रहे
महासती कुमुद की संगत सदा मिलती रहे..........
दिवाकर दरबार की ज्योत ये जलती रहे......
गाँधी ये जब तक जिए करता ये भक्ति रहे...........
 

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